मुजफ्फरनगर। होली चाइल्ड पब्लिक इण्टर कॉलेज, जडौदा के सभागार में तीन दिवसीय ‘‘माइस्टरी ऑफ ग्रेट टीचिंग’’ कार्यशाला के प्रथम दिन का शुभारम्भ मुख्यअतिथि गजेन्द्र कुमार जिला विद्यालय निरीक्षक मु0नगर, शिव कुमार प्रधानाचार्य सूर्यदेव इण्टरनेशनल स्कूल मु0नगर एवं सचिव इन्डिपेनडेन्ट स्कूल एसोसिएशन, एफिलेटिड स्कूल्स एण्ड वैलफेयर एशोसिएशन मु0नगर के पदाधिकारी जशवीर राणा प्रदेश अध्यक्ष, चन्द्रपाल सिंह प्रदेश उपाध्यक्ष, एस0सी0 त्यागी संरक्षक, यशपाल सिंह पुण्डीर, आशीष द्विवेदी, आशिक अली, मुख्यवक्ता संजीव जलोत्रा स्टेट गवर्नमेंट प्रोग्राम कोर्डिनेटर आर्ट ऑफ रिविंग, विरेन्द्र कुमार अग्रवाल अध्यापक प्रशिक्षक एवं प्रधानाचार्य यू0पी0एस0 बरूकी, समृद्धि त्यागी काउन्सलिंग एण्ड कैरियर काउन्सलर, प्रधानाचार्य प्रवेन्द्र दहिया एवं अध्यक्ष रीटा दहिया द्वारा दीप प्रज्जवल्लित कर किया गया।
कार्यशाला के मुख्य अतिथि जिला विद्यालय निरीक्षक गजेन्द्र कुमार ने सभागार में उपस्थित प्रतिभाग करने वाले सभी शिक्षक एवं शिक्षिकाओं को सम्बोधित करते हुए बताया कि हम विद्यालय में शिक्षा देने का एक माहौल तैयार करते है प्रत्येक शिक्षक का एक नैतिक कर्तव्य है कि वह अपने विद्यार्थियों में नैतिक, बोद्धिक, मानसिक विकास के साथ-साथ संस्कारी गुणों को भी विकसित करायें क्योंकि विद्या ददाति विनयं, विनम ददाति पात्रताम। अतः विद्या का संस्कार से जुडना बहुत जरूरी है, बिना संस्कार के विद्या बेकार है, एक अध्यापक जब तक बच्चों के मनोविज्ञान को नहीं समझता तब तक वह पूर्ण अध्यापक नहीं बन सकता है। यदि आप आदर्श अध्यापक बनाना चाहते है तो आपको बच्चों की साइकलोजी को समझना होगा।
कार्यशाला के प्रथम वक्ता संजीव जलोत्रा ने सभागार में उपस्थित सभी प्रतिभागियों को सम्बोधित करते हुए बताया कि हमें बच्चों के मनोविज्ञान को बहुत ही नजदीक से समझना होगा। बच्चे प्रकृति के बहुत ही नजदीक होते है, मगर हम उनको अपने हिसाब से ढालने के कोशिश करते है जिसके परिणाम स्वरूप बच्चे अपने प्राकृतिक स्वरूप से दूर होते जाते है। अतः हमें बच्चों के मनोविज्ञान को समझते हुए हमें अपने आप को उनके समकक्ष रखकर उनकी भाषा में ही अपने ज्ञान को प्रस्तुत करना चाहिए जिससे बच्चों में पढाई के प्रति रूचि बढे, जैसे- हमारी अपेक्षा बच्चे स्वयं को प्रत्येक माहौल में ढाल लेते है।
द्वितीय वक्ता विरेन्द्र कुमार अग्रवाल ने नवाचार शिक्षण पद्धति पर जोर देते हुए बताया कि हमें बच्चों को 2-3 अक्षर देकर केवल उन्हीं अक्षरों से शब्द एवं वाक्य बनवाने की कोशिश करे, ऐसा करने से बच्चों में शिक्षा के प्रति रूचि बढेगी। बच्चें ज्यादातर चित्रों के माध्यम से सीखना पंसद करते है। हमें खोज मूल्यांकन और क्रियान्वयन पर कार्य करना चाहिए अर्थात् हमें इस बात की खोज करनी चाहिए कि बच्चें किस प्रकार अच्छे से सीख सकते है फिर उसका मूल्यांकन कर उसको व्यवहार में उतारे। ये आप सभी विषयों में लागू कर सकते है। बच्चा प्रैक्टिकली ज्यादा सीखता है अतः प्रत्येक बच्चों को बोर्ड पर अवश्य लायें जिससे उनके अन्दर का संकोच खत्म हो। छोटे बच्चें अपने अध्यापकों को अपना आदर्श मानते है। अतः प्रत्येक शिक्षक को अपने आचार-विचार, व्यवहार और अपनी भाषा पद्धति पर हमेंशा सुधार करते रहना चाहिए शिक्षक जैसा करते है छोटे बच्चे भी अक्सर वही करते है।
कार्यशाला की तृतीय वक्ता समृद्धि त्यागी ने बच्चों के व्यवहार में सुधार लाने से पहले शिक्षकों को अपने व्यवहार में भी सुधार लाना अतिआवश्यक है। शिक्षक चाहता है कि विद्यार्थी उसके साथ सम्मानित व्यवहार करें। अतः हमें भी विद्यार्थियों के साथ ऐसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा हम उनसे अपेक्षा करते है। शिक्षक को अपने कथन पर हमेंशा कायम रहना चाहिए, आप कक्षा जो भी कहते है उस पर कार्यवाही जरूर करें। उसके बाद उन्होंने शिक्षकों की शिक्षण पद्धति के आधार पर अध्यापकों का वर्गीकरण किया। हर बच्चा एक ही प्रकार से नहीं सीख सकता है बच्चे देखकर, सुनकर एवं कुछ स्पर्श के माध्यम से सीखते है, अतः हमें शिक्षा पद्धति में सभी पद्धितियों का समावेश करना चाहिए जिससे कि विद्यार्थी आपकी शिक्षण पद्धति में रूचि लें और आपको अपना आदर्श मानें।
सभी वक्ताओं एवं मुख्यअतिथियों को प्रधानाचार्य प्रवेन्द्र दहिया द्वारा शॉल व स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया। कार्यशाला का समापन प्रदेश अध्यक्ष जशवीर सिंह राणा ने कार्यशाला में उपस्थित सभी अतिथियों, वक्ताओं एवं प्रतिभागियों का आभार एवं धन्यवाद व्यक्त करते हुए कहा कि आप सभी बधाई के पात्र हो जो इस तरह की कार्यशाला में प्रतिभाग कर अपनी शिक्षण पद्धति में नवाचार का समावेश करने के लिए प्रतिबद्ध है। अतः आप सभी का बारम-बार धन्यवाद।