मुजफ्फरनगर, जेएनएन । महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है, लेकिन चिकित्सा की बुनियादी सुविधाओं से जनपद में आज भी वें दूर हैं। जिला महिला चिकित्सालय सहित जनपद के सीएचसी-पीएचसी पर उन्हें सेवाएं प्रदान करने को बिल्डिंगों पर तो रुपया खर्च किया जा रहा है। परंतु वहां मिलने वाले विशेषज्ञ डॉक्टरों की सुविधाओं को प्राप्त करने से महिलाएं वंचित हैं। अस्पताल में डिलीवरी का आंकड़ा प्रतिमाह 1000 तक पहुंच रहा है, जिन्हें करने के लिए महिला डॉक्टरों को कई गुणा कार्य करना पड़ रहा है।
जनपद में महिलाओं की संख्या 15 लाख से ऊपर है। महिलाओं को चिकित्सा सुविधाएं देने के लिए शासन सहित जनपद स्तर से खूब प्रयास किए जाते हैं। इसके बाद भी महिलाओं को पर्याप्त सुविधाओं से दूर रहने की नौबत झेलनी पड़ती है। एक तरफ महिला चिकित्सकों को जिला महिला अस्पताल में चिकित्सकों की तैनाती के अभाव में काम का दबाव झेलना पड़ रहा है तो वहीं दूसरी और डिलीवरी के लिए वहां पहुंच रही गर्भवतियों को भी विशेषज्ञ डॉक्टरों से मिलने वाले परामर्श और सुविधाओं से वंचित रहना पड़ता है। जिला महिला अस्पताल में तीन गाइनिकोलॉजीस्ट सहित चार ईएमओ और सर्जन की डिमांड शासन को कई वर्षाें से सीएमएस भेज रही हैं, लेकिन परिणाम शून्य है। इस वक्त 100 बेड वाले जिला महिला अस्पताल में सर्जन की जिम्मेदारी सीएमएस पर होने के साथ छह गाइनिकोलॉजिस्ट, एक विशेषज्ञ, तीन एमबीबीएस और दो ईएमओ से काम चलाया जा रहा है, जो प्रतिमाह 1000 तक डिलीवरी समेत अन्य कार्य को पूरा कर रही हैं। डिलीवरी ज्यादा, चिकित्सक कम
सीएमएस डा. अमिता गर्ग बताती हैं कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों के हिसाब से अस्पताल में प्रतिमाह 500 से अधिक महिलाओं की डिलीवरी होने पर कम से कम चार ईएमओ, चार विशेषज्ञ चिकित्सक के साथ तीन एमबीबीएस चिकित्सक होने अनिवार्य है, लेकिन जिला महिला अस्पताल में प्रतिमाह होने वाली डिलीवरी का आंकड़ा 600 से 1000 के बीच पहुंच रहा हैं। इससे साफ है कि अस्पताल में तैनात चिकित्सकों पर मरीजों का तीन से चार गुना तक भार बढ़ा हुआ है। जनपद की सीएचसी-सीएचसी सर्जन विहीन
जनपद में नौ सीएचसी और 44 पीएचसी महिलाओं की बुनियादी सुविधाओं से पूरी तरह वंचित है। किसी भी केंद्र पर स्त्री रोग विशेषज्ञ के साथ सर्जन तक नहीं है। यदि किसी महिला को सीजेरियन डिलीवरी की जरुरत पड़ती हैं, तो उन्हें जिला महिला अस्पताल की तरफ ही दौड़ना पड़ता है। आंकड़ों पर एक नजर